Haryana Rice Mills Shifted to Madhya Pradesh: सरकार को अपनी नीतियों पर चिंतन और मंथन करना होगा, हाल ही में बिजली की दरों में की गई वृद्धि से अनेक उद्योग पलायन की तैयारी में हैं।
Rice Industry Migrating from Haryana: हरियाणा में भाजपा सरकार की विफल और जनविरोधी औद्योगिक नीतियों के कारण प्रदेश से उद्योगों का बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है, जिससे प्रदेश को दोहरी क्षति हो रही है, एक ओर युवाओं का रोजगार छिन रहा है और दूसरी ओर सरकार को भारी राजस्व घाटा उठाना पड़ रहा है।
हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में हरियाणा से 90 से अधिक चावल मिलें मध्य प्रदेश में शिफ्ट हो चुकी हैं। यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है और प्रदेश के औद्योगिक भविष्य पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है। सरकार को अपनी नीतियों पर चिंतन और मंथन करना होगा, हाल ही में बिजली की दरों में की गई वृद्धि से अनेक उद्योग पलायन की तैयारी में हैं।
15 से 29 हजार रोजगार होंगे खत्म
मीडिया को जारी बयान में सांसद कुमारी सैलजा ने कहा है कि देश में चावल निर्यात में हरियाणा की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत रही है जो अब घटकर 40 प्रतिशत रह गई है। इतना ही नहीं एक ओर जहां हर साल प्रदेश को कम से कम 100 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान होगा वहीं हर साल 15 से 20 हजार रोजगार भी कम हो जाएंगे। तीन साल में हरियाणा के करनाल, कैथल, अंबाला, यमुनानगर, फतेहाबाद, सिरसा, तरावडी, चीका, घरौंदा, कुरूक्षेत्र, निसिंग, टोहाना और रतिया से करीब 90 राइस मिल का मध्य प्रदेश पलायन हो चुका हैै।
इसके साथ ही 20 से 30 उद्योगपतियों ने मध्य प्रदेश में नए राइस मिल और गोदाम बनाने के लिए जमीन तक खरीद ली है। राइस मिल मालिक काफी समय से सरकार से मार्केट फीस कम करने की मांग कर है साथ ही कुछ रियायतें भी मांग रहे है पर सरकार है कि कान में तेल डालकर बैठी हुई है। ऊपर से प्रदेश की भाजपा सरकार ने हाल ही में बिजली की दरों में वृद्धि की हैै जिसका उद्योगपतियों ने विरोध किया है और सरकार से इसे वापस लेने की मांग की है ऐसा न होने पर उद्योगपतियों ने दूसरे राज्यों में पलायन की चेतावनी तक दी है।
सैलजा ने कहा है कि हरियाणा में चावल उद्योग पर 4 प्रतिशत मार्केट फीस है जबकि मध्य प्रदेश में 1.20 प्रतिशत है। उद्योगपतियों को बिजली के भारी फिक्स चार्ज और अनावश्यक नियमों का सामना करना पड़ रहा है। नीति निर्धारण में स्थायित्व और पारदर्शिता का अभाव है।
प्रदेश को होगा हर साल 100 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान
राइस मिल मालिक एक ही बात कहते है कि अगर हरियाणा में सेला राइस मिल लगानी हो तो उस पर 14 से 15 करोड़ का खर्च आता है जबकि यही मिल मध्य प्रदेश में 07 से 08 करोड़ मेें लग जाती है। इतना ही नहीं एमपी में राइस मिल मालिक को प्लांट लगाने या गोदाम बनाने के लिए 60 प्रतिशत तक सब्सिडी मिलती है जबकि हरियाणा में नहीं है, इसके साथ ही एमपी में नए उद्योगपति को पांच साल तक 05 करोड़ रुपये मार्केट फीस में छूट मिलती है।
प्रदेश सरकार की गलत नीतियों के चलते हर वर्ष करीब 15 से 20 हजार लोगों का रोजगार छिन रहा है, राज्य की चावल निर्यात में हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से घटकर अब मात्र 40 प्रतिशत रह गई है। सरकार को 100 करोड़ रुपये से अधिक का वार्षिक राजस्व घाटा होने की आशंका है।
सैलजा ने कहा कि यह पलायन भाजपा सरकार की उद्योग विरोधी नीतियों का परिणाम है। यदि सरकार ने समय रहते नीति में संशोधन नहीं किया, तो अन्य उद्योग भी प्रदेश छोड़ने को मजबूर होंगे। कुमारी सैलजा ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि मार्केट फीस और टैक्स की दरें पड़ोसी राज्यों के समतुल्य की जाएं, बिजली शुल्कों में व्यावहारिक संशोधन किया जाए, उद्योगपतियों के लिए अनुकूल और स्थिर औद्योगिक वातावरण तैयार किया जाए। कुमारी सैलजा ने हरियाणा के युवाओं के भविष्य, रोजगार और आर्थिक समृद्धि को सुरक्षित रखने के लिए तत्काल ठोस कदम उठाना समय की मांग है।